बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा Basant panchami aur Saraswati puja

basant ritu and basant (vasant) panchmi

वसंत या बसंत | Basant Ritu को ऋतुराज अर्थात् ऋतुओं का राजा (King of all seasons) कहा जाता है। बसंत के मौसम में सूर्यदेव अपनी पूर्ण आभा के साथ प्रकट होने लगते हैं। हाड़कंपाऊ ठंड के बाद तापमान में आनंददायिनी ऊष्मा का संचार होता है। आम के बौरों से अमराइयाँ महकने लगती हैं। चारों ओर हरियाली दिखने लगती है। वातावरण में एक नई स्फूर्ति और ताजगी का वास होता है। नव-किसलय और मनमोहक पुष्पों की सुगंध से युक्त वासंती बयार दिग-दिगंत को सुवासित कर देती है। कोयल अपनी मधुर तान छेड़ देती है। मयूर नृत्य करने लगते हैं और ऐसा प्रतीत होता है मानों प्रकृति इस उल्लास में अपना सतरंगी आँचल लहराती हुई उन्मुक्त झूम रही हो।
"बसंत (basant) को कामदेव का पुत्र  (son of Kamdev) माना जाता है और यह मान्यता है कि सौंदर्य के देवता काम के घर बसंत रूपी पुत्र के जन्म का समाचार पाकर प्रकृति आनंदातिरेक से झूम उठती है।"



बसंत ऋतु का समय (Duration of basant ritu) और बसंत पंचमी | Basant panchmi


बसंत ऋतु की शुरुआत बसंत पंचमी (basnat panchami) से होती है। बसंत पंचमी हिन्दी माह के अनुसार माघ महीने की पंचमी तिथि को होती है।


      ➲ # हिंदी महीनों की अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें


बसंत ऋतु के साथ ही भारतीय नव-वर्ष का आरंभ होता है। इस तरह भारतीय षड्ऋतु विभाजन के अनुसार वसंत ग्रीष्म ऋतु के पहले और शिशिर ऋतु के बाद आता है। इसे समझने के लिए निम्न सारिणी देखें-

छः ऋतुओं के नाम (6 rituon ke names in Hindi & English)



ऋतुओं के नाम
अंग्रेजी नाम
हिंदी माह
अंग्रेजी महीने
वसंत
Spring
चैत्र-वैशाख
मार्च-अप्रैल
ग्रीष्म
Summer
ज्येष्ठ-आषाढ़
मई-जून
वर्षा
Rains
श्रावण-भाद्रप्रद
जुलाई-अगस्त
शरद
Autumn
आश्विन-कार्तिक
सितंबर-अक्तूबर
हेमंत
Pre-winter
मार्गशीर्ष-पौष
नवम्बर-दिसंबर
शिषिर
Winter
माघ-फाल्गुन
जनवरी-फरवरी

वसंत ऋतु भारतवर्ष में नए वर्ष के आरंभ की ऋतु है। इस कालावधि में प्रकृति में नयापन प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है जो इस बात को सिद्ध करता है कि प्राचीन भारत में अन्य अनेक परम्पराओं की ही तरह ऋतुओं का विभाजन भी वैज्ञानिक और तर्कसंगत रूप से किया गया था।


बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा 

Basant pachmi & Saraswati puja


सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं-सरस्वती जिन्हें विद्या की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। सरस्वती संगीत और अन्य समस्त गायन, वादन, ललित, चित्रादि कलाओं की देवी (Goddess of arts) हैं। इनका चतुर्भुज स्वरूप श्वेतवर्णा, श्वेतवसना, श्वेत-पद्मासना, वीणापुस्तक और मालाधारिणी का है। माँ सरस्वती के शारदा, वीणावादिनी, शतरूपा, वाग्देवी, वागेश्वरी आदि अन्य नाम हैं।

वसंत में और उसमें भी वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन का विशेष महत्व है। विद्यालयों, संगीत-कला संस्थाओं और अन्य शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थाओं में सरस्वती का पूजन विशेष रूप से किया जाता है। बसंत पंचमी के दिन पूजा करने से देवी सरस्वती की कृपा वर्षपर्यंत बनी रहती है और सच्चे हृदय से साधना करने वाले व्यक्ति को सर्वत्र सफलता प्राप्त होती है।

रामचरितमानस के रचयिता तुलसीदास जी ने भी अपने ग्रंथ का आरंभ निम्नलिखित पंक्तियों में सरस्वती वंदना के साथ किया है-
वर्णानामर्थ संघानाम् रसानाम् छंदसामपि ।
मंगलानाम् च कर्तारौ वन्दे वाणी विनायकौ ॥
 विशेष: बच्चों का अक्षरारम्भ और विद्यारम्भ बसंत पंचमी के दिन कराया जाता है। 

"भारत के अतिरिक्त नेपाल, म्यांमार (बर्मा), चीन, जापान, इंडोनेशिया, थाइलैण्ड आदि देशों में भी सरस्वती की पूजा होती है।"

सरस्वती पूजा की विधि 

Saraswati pooja ki vidhi

देवी सरस्वती की पूजा करने के लिए सरस्वती की प्रतिमा अथवा चित्र स्थापित कर स्नानादि के द्वारा पवित्र होकर, पीले अथवा श्वेत वस्त्र धारण करके स्वच्छ और यथासंभव श्वेत आसन पर बैठा जाता है। गंध, अक्षत, केसरिया, पीले या श्वेत पुष्प अर्पित किए जाते हैं। केसरिया या श्वेत चन्दन का टीका किया जाता है और पीले चावल, खीर, मेवा, मिष्ठान्न आदि का भोग लगाया जाता है। इस तरह यथौपलब्ध सामग्री के द्वारा भक्तिभाव से प्रार्थना करते हुए माँ की पूजा की जाती है और सरस्वती मंत्र का पाठ किया जाता है।


  सरस्वती वंदना 

(Saraswati Vandna)


या कुन्देन्दु तुषार हार धवला या शुभ्र वस्त्रावृता।
या वीणा वरदण्डमण्डितकरा या श्वेत पद्मासना॥
या ब्रह्माच्युतशंकर: प्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता।
सा माम् पातुसरस्वतीभगवती निःशेषजाड्यापहा॥

शुक्लां ब्रह्म विचार सार परमाद्याम् जगद्व्यापिनीम्।
वीणापुस्तकधारिणीमभयदाम् जाड्यान्धकारापहम्॥
हस्तेस्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे तां परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्॥ 


सरस्वती मंत्र 

(Saraswati Mantra)


शारदा शारदाम्भोज वदना वदनाम्बुजे।
सर्वदासर्वदास्माकम् सन्निधिम्सन्निधिम् क्रियात्॥

विद्याध्ययन से पूर्व निम्नलिखित मंत्र का पाठ करने से माँ सरस्वती की विशेष कृपा प्राप्त होती है-

सरस्वती नमस्तुभ्यम् वरदे कामरूपिणी।
विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा॥



!!जय माँ सरस्वती!! 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

चार वेद, छ: शास्त्र, अठारह पुराण | 4 Ved 6 Shastra 18 Puranas

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की ओजपूर्ण कविता- कलम आज उनकी जय बोल

हिंदी भाषा में रोजगार के अवसर [करियर] Career in Hindi language